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शायर

  तुम्हारी ज़ुल्फ़ को जब मैंने घटा कह दिया तुम्हारी आँखों की गेहराई को सागर कह दिया तुम्हारे होटों को कहा प्याले शराब के तुम्हारे गालों को कहा फूल गुलाब के तो लोगो ने ख़्वामख्वा मुझे शायर कह दिया वो क्या जाने ,असली शायरी तो तुम लिखती थी  

इश्क़

  थोड़ी हसकर, थोड़ी रूठकर अब सब से मैं बतियाती हूँ लोग कहते है तेरे इश्क़ में पागल पागल फिरती हूँ बरसने लगे बारिश तो अब छाता लेकर भीगती हूँ लोग कहते है तेरे इश्क़ में पागल पागल फिरती हूँ देर -सवेर ,चुप-चाप अब सपने बुनती रहती हूँ ऑंखें झुकाएं शरमा के अब अकेलिहि हस्ती … Continue reading इश्क़

Saath.

तुम आकाश हो अगर कभी मैं रहूंगी धरा तुम्हारी तुम पेड़ हो अगर कभी मैं रहूंगी छाया तुम्हारी तुम अगर फूल बन जाओ मैं महकूँगी तुम्हारी महक तुम अगर सागर बन जाओ तो छल्कुंगी बनकर तुम्हारी लेहेर तुम मेरे तन के कण-कण में बसे रहोगे मैं तुम्हारे मन के हर घर में बसी रहूंगी आएगा … Continue reading Saath.

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